बुधवार, 11 मार्च 2015

PestGoGo

यह ब्लॉग मै अपने बेटे राजन के लिए लिख रही हूँ।  राजन ने लगभग पिछले बीस साल से पेस्ट कंट्रोल में काम किया है. पिछले ५ साल से वह वाईस प्रेजिडेंट पोजीशन पर एक मल्टीनेशनल के लिए काम कर रहा था।  इतने अनुभव के बाद उसने अपनी कंपनी खोली है जो के आम कंपनी से कही ज्यादा बढ़िया सर्विस देती है. आप को अगर किसी भी तरह का पेस्ट कंट्रोल या दीमक (टरमाइट) की प्रोपरशानी हो तो आप जरूर उसकी वेबसाइट पैर जायें pestgogo.com

बुधवार, 26 जनवरी 2011

प्रायश्चित


नवीन आज फिर पटना के उसी होटल में उसी जगह पर बैठा हुआ था जहां छब्बीस साल पहले बैठा था ,पर तब और अब में कितना फर्क है .तब वह खुशियाँ मना रहा था और आज अपना गम गलत कर रहा है.किसी ने सच कहा है जैसा बोवोगे वैसा काटोगे.उस समय उसे कहाँ संध्या के तकलीफों को देखने की भी फुरसत थी वह तो इतना खुश था जैसे कोई किला फतह कर लिया हो.जम कर दोस्तों के साथ पार्टी की थी एक दो बार संध्या की याद आई भी तो उसे अपने दिमाग से झटक दिया थाजब दिलीप ने दबे जबान से उसके बारे में कुछ पूछना चाहा तो उसने बड़ी बेरुखी से कहा था "तुझे मेरे जाती मामले में दखल नहीं देना चाहिए " "मैं तेरा बचपन का यार हूँ पर तू जो कर रहा है संध्या के साथ वो सरासर धोखा है,और संध्या मेरी भी दोस्त है मैं ये सब नहीं देख सकता हूँ.” "क्यों तू पार्टी का मजा किरकिरा कर रहा है तुझे तो मेरी सफलता से खुश होना चाहिए,”तब उसे याद आ रहा है दिलीप ने ये कहा था .“आज तू मेरी बात नहीं सुनना चाह रहा है पर क्या पता समय कब तुझे क्या सुनने को मजबूर कर दे किसी के अरमानो को कुचल कर कोई कैसे खुश हो सकता है?” और दिलीप फिर रुका नहीं उसी समय चला गया थाउस समय तो उसे लगा की दिलीप को उसकी सफलता से जलन हो रही है इसी लिए वह नैतिकता का पाठ पढ़ा रहा हैपर आज उसे ये महसूस हो रहा था कितना सच बोला था उस दिन दिलीप.आज उसकी कमी बेहद खल रही थीसंध्या के साथ उसने जो नाइंसाफी की थी वह अब खुद अपनी बेटी के साथ होते देख कर उसे लग रहा था क्या गुजरी होगी संध्या और उसके परिवार पर उसके इस स्वार्थ और नीचता भरे कदम से,कैसे संभाला होगा संध्या ने अपने आप कोइतने सालों के बाद उसे आज लग रहा था उसने लालच में आकर बहुत ही गलत काम किया था जिसका बदला कुदरत ने उसकी बेटी को इस हाल में पहुंचा कर ले लिया. “साब "उसने वेटर को कॉफी लाने बोला.कुछ ही देर में कॉफी का कप सामने था धीरे उसने सिप लिया ओर फिर से यादों में डूब गया . .
नवीन,दिलीप और संध्या एक ही स्कूल में पढते थे .संध्या इनसे दो साल जूनियर थी उसके पिता जी श्री राम प्रसाद सिंचाई विभाग में बड़े बाबू थे.दिलीप के पिता जी श्री केशव वर्मा इंजीनयर थे और नवीन के पिता जी
भरत सिन्हा जूनियर इंजीनयर थे.ये सब अपने अपने परिवार के साथ सिंचाई विभाग के कालोनी में ही रहते थे इस लिए आपस में अच्छी दोस्ती हो गयी थीकई सालों से ये यहाँ रह रहे थे कभी तबादला होता तो भी परिवार के लोग
यहीं रहते थे और ये भी दुबारा कोशिश कर वापस यहीं आ जाते थे.यहीं पर कालेज के दिनों में संध्या और उसमें प्यार
हुआ था जो शादी के निकट तक जा पहुंचा था.उसके पिता को मनाना कितना कठिन काम था वो तो किसी भी तरह से मान नहीं रहे थे दिलीप और उसके माता पिता ने मिल कर कितना समझाया था "भरतबाबू लड़का लड़की बालिग़ हैं
अगर शादी करना चाहतें हैं तो मंजूरी दे दीजिए आपका मान बना रहेगा वरना ये कोर्ट में जा कर शादी कर लेंगे फिर तो आप कुछ भी नहीं कर पायेंगे और लड़की आप की जानी पहचानी है सुशील है सुन्दर पढ़ी लिखी डाक्टर उसकी कमाई भी तो किसी दहेज से कम नहीं होगा .” ये लालच के बाद बड़ी मुश्किल से माने थे पर फिर उन्होंने एक शर्त रख दी, “ नवीन की शादी उसके नौकरी लगने के बाद ही होगी तब तक वे इन्तजार करें संध्या की तो अभी दो साल की पढ़ाई ही बाकी है पहले वो तो पूरा करले." उनकी इस बात को सभी ने आसानी से मान लिया क्योंकि ये सही भी तो था . "अभी ये बात अपने तक ही रखियेगा वरना लोग तरह तरह की बातें करेंगे तो लड़की की बदनामी होगी.”वैसे भी उनकी बातों को मानने के अलावा कोई चारा नहीं था किसी के पासइन सब बातों में बड़े बाबू को इन लोगों ने शामिल भी करने की कोशिश नहीं की जिससे वे काफी आहत हुए पर बेटी की खुशी के लिए इस अपमान को भी चुप चाप सहन कर लिए.संध्या उनकी एकलौती औलाद थी उसके जन्म के समय ही उसकी माँ का देहांत हो गया था लोगों ने लाख समझाया दूसरी शादी के लिए पर वे नहीं माने अपनी बूढी माँ के साथ मिलकर उन्होंने संध्या का पालन पोषण किया था संध्या को अपने सिमित आय रहते हुए भी किसी तरह महंगे स्कूल और मेडिकल की पढाई करवाई थी.नवीन के प्यार को भी मंजूरी दे दी थी बेटी की खुशी के खातिर वरना उन्हें नवीन या उसका परिवार बिलकुल पसंद नहीं था,नवीन के पिता काफी लालची होने के अलावे बड़े घमंडी भी थे.
शर्त रखने के पीछे भी नवीन के पापा की चाल थी ये तो नवीन भी उस समय नहीं जान पाया था.दरसल
उसके पापा किसी भी तरह से इस शादी को टालना चाहते थे .उनके मन में नवीन की शादी किसके साथ करना है ये पहले से ही तै था पर जब तक सब कुछ अपने अनुकूल नहीं हो जाये वे किसी से भी बताना उचित नहीं समझते थे इस बार के दौरे पर आने के बाद जब कमलकांत बाबू {चीफ इंजीनयर ने बोला था कोई अच्छा लड़का बताइए भरत बाबू मेरे साढूभाई की बेटी के लिए तभी से उनके दिमाग में ये चल रहा था साहब उन्ही के स्वजाती थे इसलिए भी भरत बाबू उनके खास मुसाहिब थे .जब भी यहाँ दौरे पर आते तो उनके लिए सारा इंतजाम भी भरत बाबू के जिम्मे ही होता था.बड़े साहब के साढू इंग्लैंड में रहते थे वे वहाँ डाक्टर थे उन्ही की इकलौती बेटी के लिए डाक्टर लड़का खोजा जा रहा था.उस समय विचार हुआ था की कुछ लड़कों की लिस्ट बना ली जायेगी और कुछ महीने बाद वे लोग पूरे परिवार के साथ जब आयेंगे तब जो पसंद आएगा खास कर डौली को उससे शादी करके लड़के के साथ वे सब लौट जायेंगे.लड़का उन्ही लोगों के साथ रहने जाएगा क्योंकि उन्हें घर जमाई चाहिए था,इस सब के बदले एक मोटी रकम लड़के के पिता को दी जायेगी.वो मोटी रकम करोड़ों में थी ये उन्हें पता थाअब वो कुछ ऐसा प्लान कर रहे थे की डौली को नवीन ही पसंद आजाये इसके लिए उन्होंने कुछ सोच कर रक्खा थाउनका नवीन था भी आकर्षक डीलडौल का नौजवान साथ में मेडिकल का आखरी साल था उसका,हर तरह से डौली के लायक बस उनका अपना हैसियत ही थोड़ा कम था फिर भी वे अपना मकसद पूरा करने की कोशिश में लग गए थे,इसी बीच बड़े बाबू की बेटी पता नहीं कहाँ से टपक गयी.अभी अगर वे साफ मना कर देंगे तो जवानी के जोश में बेटा कुछ भी कर सकता है ये उन्हें भी पता है सो उन्होंने ये चाल चली थी.पर उन्हें पूरा विश्वास था की हालात को वे अपनी अनुसार कर लेंगे.
प्रोग्राम के अनुसार डौली का पूरा परिवार अगले हफ्ते में पटना आरहा था.वे लोग बड़े साहब के यहाँ ठहरने
वाले थे पर उनके घूमने फिरने का सारा इंतजाम भरत बाबू के ही जिम्मे था उनके गाँव माधोपुर से लेकर राजगीर नालंदादेवघर और बौद्धगया सभी जगह उनके ठहरने का इंतजाम वे पहले ही कर चुके थे कुछ लड़कों के लिस्ट भी
बना लिए थे पर इस बात का उन्होंने खास ख्याल रक्खा था कि हर लड़का नवीन से उन्नीस हो.अब आखरी और सबसे
जरुरी काम को करना था इसके लिए उन्होंने अपनी पत्नी को भी इस योजना में शामिल कर लिया .उनकी पत्नी एक
सीधी साधी स्त्री उसे ये छल प्रपंच का कुछ पता नहीं था,उसे बस अपने बेटा और बेटी के अच्छे भविष्य के लिए जो भी
कहा गया तो उसे करने में उसे कोई ऐतराज नहीं हुआ.अगले दिन ही उन्होंने बेटा से कहना शुरु किया नवीन बेटा शीला बड़ी हो गयी है अब उसके लिए लड़का देखना चाहिए हाँ माँ मेरी शादी के पहले उसीका शादी हो जाना ठीक होगा वो भी तो अपना ग्रेजुएशन इस बार पूरा कर लेगी.” आप क्या कहते हैं?” नवीन कि माँ ने उसके पापा से उनकी राय जाननी चाही "मैं क्या कहूँ कई जगह बात चलाई थी मैंने लड़के वालों का जो मांग है मैं किसी भी तरह पूरी नहीं कर सकता इसीसे सोचा था कि नवीन कि शादी में जो मिलेगा उसी से शीला कि शादी हो जायेगी पर अब तो इसकी शादी में भी मुझे को खर्च करना है तो उसकी बात अभी सोच कर क्या फायदा?अब या तो चार पांच साल के बाद जब नवीन कमा कर कुछ जमा करले लेगा तब शादी कर सकते हैं या किसी बेरोजगार या दुहाजू लड़के से अभी करने को सोच सकते हैं.” “ ये आप क्या कह रहे हैं?मेरी एक ही तो बेटी है उसकी शादी किसी ऐसे जगह मैं हरगिज नहीं होने दूंगी और चार पांच साल के बाद कौन इससे शादी करेगा तबतक बहुत देर हो जायेगी लड़का मिलना मुश्किल हो जाएगा.” ये सब सुन कर शीला सुबक सुबक कर रोने लगी नवीन के समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था ”पापा क्या आपने शीला कि शादी के लिए कुछ रुपये जमा करने को नहीं सोचा था?” “ सोचा था बेटाकिया भी था पर वो रुपये तेरी माँ के आपरेशन और तेरी दादी के क्रियाकर्म में खर्च हो गए बाकी तेरे मेडिकल के महँगे पढ़ाई में लग गए अब मैं तो सोच रहा था कि तेरे शादी में जो मिलेगा उसीसे इसकी शादी कर दूँगा मुझे क्या पता था कि तू हमारे या अपनी बहन के बारे में कभी सोचेगा ही नहीं?.खैर तू चिंता मत कर देखता हूँ अपने गाँव के पुश्तैनी घर को बेच कर कुछ मिलता है या नहीं?खेत तो सब तेरे दादा के इलाज के समय ही बिक गया था.” “ उस टूटे खपरैल के घर का कितना पैसा मिलेगा और रिटायरमेंट के बाद हम कहाँ रहेंगे?”उसकी माँ चिंता भरे स्वर में बोली. “अब जो होगा हमारे नसीब में भुगत लेंगे तुम्हारे चिंता करने से क्या होगा?” नवीन कि तरफ कनखियों से देखते हुए भरत बाबू ने कहा.नवीन उठ कर अपने कमरे में चला गया पर उसके चेहरे को देख कर साफ लग रहा था कि उसके दिमाग में काफी उथल पुथल मच गया है.आज के लिए इतना ही काफी है सोच कर वे भी अपने कमरे में चाल दिए .शान्ति देवी अपनी लाडली को चुप करने में लगी हुईं थीं.
सभी लोग रात अच्छी नींद नहीं सो पाए.सुबह उठते ही चाय पीते हुए नवीन ने पापा से कहा "पापा क्या
हम लोन लेकर शीला कि शादी नहीं कर सकते हैं?” बेटा मेरे रिटायरमेंट में बस दो साल है लोन मिलना बहुत ही
मुश्किल है पर कुछ ना कुछ हो जाएगा.तुम इतना परेशान मत हो अभी तो तुम जरा मेरी मुश्किल आसान कर दो.”
क्या पापा बोलिए?” इस समय नवीन कुछ भी पापा के लिए करने को तैयार था. “बड़े साहब के रिश्तेदार लन्दन से अगले हफ्ते पटना आरहे हैं .मैंने सारा इंतजाम कर लिया है उनके आने जाने घूमने का पर एक मुश्किल है मेरे लिए,वे लोग नए चलन के हैं मैं ठहरा पुराने तौर तरीके वाला मुझे बड़ी परेशानी होगी क्या तुम मेरे लिए कुछ दिनों तक उनको अपना समय दे सकोगे?” हाँ हाँ पापा अभी तो छुटियाँ भी है मेरी ,ये काम आप मुझ पर छोड़ दीजिए.” “ बेटा इतना ध्यान रखना किसी भी बात का वे बुरा नहीं मान लें वरना बड़े साहब मुझ पर नाराज होंगे.” "आप निश्चिन्त रहिये पापा उन्हें खुश रखना अब मेरा काम होगा.” भरत बाबू ने चैन कि साँस ली उनके योजना के अनुसार काम होता नजर आ रहा थाभरत बाबू बड़े ही घाघ आदमी थे पर अभी तक अपने नौकरी में ही छल कपट से काम लेते थे ये पहली बार हो रहा था कि अपने बेटे से ही छल कर रहे थे उन्हें बुरा भी लग रहा था पर वे अपने मन को समझा रहे थे परिवार कि इसीमे भलाई और उन्नति है.
आज आफिस में शर्मा ने पूछा भी "क्या बात है भरत बाबू बड़े अनमने लग रहे हैं कोई परेशानी है क्या ?वैसे सब कि परेशानी तो आप दूर करते हैं आपको क्या चिंता हो सकती है भला?” ”अरे कुछ नहीं रात ठीक से सो नहीं पाया इसी वजह से आपको ऐसा लग रहा होगा.” “हाँ भाई इतनी बड़ी जिम्मेदारी निभाना आसान नहीं होता है ,बड़े साहब के साढू सदानंद बाबू जो आ रहे हैं उनका खातिर तवज्जो में कहीं किसी तरह कि कमी हुई तो बड़े साहब नाराज हो जायेंगे .” “ अरे नहीं इतना तो करना ही पडेगा आखिर हमारे रिश्तेदार भी हैं बड़े साहब.” खिसयानी हंसी के साथ भरत बाबू ने कहा .“ हाँ ये बात तो आपकी बिलकुल सही है वैसे भी अतिथि देवोभव:में हम सब भारतीय की आस्था है.”
नवीन की संध्या से मुलाकात जब हुई तब उसने घर में हुई बातचीत के बारे में बताया उसे .सुन कर संध्या भी
परेशान हो गयी,दोनों बैठ कर आगे के बारे में की क्या करना होगा विचार करने लगे.”मेरे कारण तुम्हारे घर वालों को जो मुश्किल हो रही है जान कर मुझे बहुत ही बुरा लग रहा है खास कर शीला के लिए पर देखना एक बार उस घर
की बहू बनने के बाद मैं अपनी पूरी लगन से सभी की सेवा और आदर से दिल जीत लुंगी.शीला के लिए तो हम दोनों को प्रयत्न करना होगा अब अंकल को और परेशान नहीं होने देंगे हम.” .” संध्या एक और बात बताना मै भूल गया
अगले हफ्ते मै नहीं मिल पाउँगा.” कहीं जा रहे हो क्या?” “ हाँ चीफ इंजीनयर के रिश्तेदार लन्दन से आ रहे हैं उन्हें
यहाँ कुछ जगहों पर ले कर जाना है,वैसे तो पापा को जाना था पर उन्होंने मुझसे ये काम करने के लिए आग्रह किया
है उन्हें थोड़ी उलझन सी होती है.” “ उनकी बेटी भी तो आरही है देखना इंग्लिश मेमके पीछे पीछे मत चले जाना तुम लन्दन वरना मेरा क्या होगा .”उस दिन मजाक में कही बात सच हो जायेगी ऐसा संध्या को पता होता तो शायद नवीन को जाने ही नहीं देती.
कल रात सदानंद बाबू सपरिवार पटना पधार चुके थे.आज नवीन को लेकर भरत बाबू बड़े साहब के यहाँ ग्यारह बजे जाने वाले थे,जाने के पहले नवीन संध्या से मिलने गया.”संध्या मैं अब तुमसे कुछ दिन शायद नहीं मिल पाउँगा,इस बीच अगर मौका मिला तो आऊंगा सिर्फ तुमसे मिलनेहाँ फोन करूँगा.” “ नवीन पता नहीं मुझे बिलकुल भी ठीक नहीं लग रहा है ऐसा लगता है जैसे कुछ बुरा होने वाला है .क्या तुम्हारा जाना जरुरी है ?” “ तुम्हे तो पता है मैंने पापा को प्रौमिस किया है इस काम के लिए अब ऐन मौका पर कैसे मना कर सकता हूँ तुम यूँ ही घबरा रही हो कुछ भी बुरा नहीं होगा.” और नवीन चला गया .बुरा तो खैर होना ही था संध्या के साथ सो हो गया.
जल्दी करो नवीन वरना कोई न कोई हमे जरुर टोक देगा.” पापा के इस बात पर नवीन को हंसी आगई
"पापा कौन सा हमे महान काम करने जाना है जिसके लिए टोक से अमंगल होने का डर है .” “मेरे लिए कोई काम छोटा नहीं है जात्रा बिगडना नहीं चाहिए बस.” अब बेटे से अभी क्या कहते वे की किस महत्वपूर्ण काम की लालसा से वे उसे लेकर जा रहे हैं.उनकी मर्जी पूरी होने का कोई संकेत भर मिल जाये फिर तो बारहों आने पौ रहेगा तब तो खैर
बेटे को किसी तरह से मना ही लेंगे वे इस बात का उन्हें पूरा विश्वास था.खैर किसी ने टोका ताकि नहीं की वे लोग
समय से पहुँच गए.वहाँ जा कर देखा दोनों साढू अपने पूरे कुनबे के साथ हाल में बैठ कर हंसी ठहाके के साथ बातों में
लगे हुए थे.नवीन थोड़ा झिझकते हुए अंदर घुसा उसके आगे पापा अंदर जा चुके थे.
आईये आईये भरत बाबू आपका ही इन्तजार हो रहा था .” जाते के साथ बड़े साहब ने मुस्कुराते हुए
कहा .”अच्छा आपके साहबजादे भी पधारे हैं ,क्या हाल है बरखुरदार ?आओ मेरे पास बैठो .”सभी का अभिवादन करके नवीन उनके बगल के सोफा पर बैठ गयाकमलकांत बाबू सभी के तरफ मुखातिब होकर बोले "अब आप सब प्रोग्राम बना लें कहाँ पर जाना है पहलेक्योंकि भरत बाबू आगये हैं साथ ही उनके सुपुत्र भी आये हैं डाक्टर नवीन सिन्हा कुछ ही दिनों बाद इन्हें डाक्टरी की डिग्री मिलने वाली है . "सभी की नजरें नवीन की तरफ उठी तो वो झेंप गया ."ये तो आपने बड़ा ही अच्छा किया जो नवीन को लेते आये ये इन्हें खूब अच्छी तरह सभी जगहों पर घुमा लाएगा इसे तो नयी नयी जगहों का पता होगा साथ ही नए तरह के रेस्तरां वगैरह की भी जानकारी होगी जहां विदेशी खाने मिलते हों क्यों नवीन ? “जी हाँ अंकल पता है मैं सब मैनेज कर लूँगा.”शाबास बेटे अब मुझे कोई फिकर नहीं है.और आप भरत बाबू तबतक इनके गाँव जाकर जरा सारी व्यवस्था एक बार देख आईएगा ये लोग अगले हफ्ते गाँव भी तो जायेंगे.” “जी सर इसी लिए मै नवीन को ले आया की बाकी जगहों पर मुझसे ज्यादा अच्छी तरह वो घुमा देगा,गाँव जाकर मैं सारी चीजों की व्य्वस्था करता हूँ .”
नवीन जो अभी तक किसी को ठीक से देख नहीं पाया था उसकी नजर डौली की तरफ गयी तो उसने पाया वह उसे बड़े दिलचस्पी से देख रही थीउसने भी उसे एक झलक में देखा ,काफी सुन्दर और स्मार्ट नजर आयी पर साथ ही शोख भी तभी तो बेबाक नजरों से उसे घूर रही थी.नवीन को अपने ऊपर अभिमान हो रहा था.”नालंदा मेडिकल में हो या पटना मेडिकल में किसमे पढते हो ?” डौली की मम्मी उसीसे पूछ रही थी "जी पटना मेडिकल में हूँ. " “अच्छा "
थोड़ा मांसल भारी शारीर था पर इस उम्र में भी काफी अच्छी दिख रही थीं बेटी में उन्ही की झलक थी. “अरे चाय वगैरह कुछ भिजवाओ नहीं अब खाना ही लगवाती हूँ इनको घूमने भी तो जाना है खाने का टाइम भी हो गया है ".
मुझे इजाजत दीजिए सर " "नहीं खाना खा कर ही जाईयेगा बड़े बाबू ने कहा .फिर सबलोग खाने अंदर चले गए .
थोड़ी देर बाद भरत बाबू चले गए .इन सभी का प्रोग्राम बना की आज यहीं पर घूमें फिर कोई अच्छी फ़िल्म देखने के बाद रात का खाना बाहर खाएं .कल सुबह सुबह राजगीर नालंदा कुलौटफौ़ल देखने जायेंगे.इसीके अनुसार नवीन सारी
बुकिंग फिल्म की टिकिट वगैरह का इंतजाम करने निकल गयाआज के प्रोग्राम में दोनों साढू शामिल नहीं थे .बस बड़े साहब के साहब के बेटे अमन और बेटी नीलू ,डौली तथा उन लोगों की मम्मी जा रहे थे.
रात में लौट कर आने के बाद नवीन घर जाना चाहा तो अमन की माँ ने कहा "रात के दो बजे हैं इस समय मत जाओ वैसे भी सुबह ही निकलना है "कपडे वगैरह भी लेना था मुझे" “तो एकदम सुबह में लेने जाना अभी नहीं और सुबह भी तुरंत आजाना वरना लेट हो जायंगे.अभी तुम गेस्ट रूम में सो जाओ अमन इसे रूम दिखा दो .”ये कह कर सब अंदर चले गए "चलिए "अमन ने कहा तो वह चेता असल में उसका ध्यान डौली पर था जो की अंदर जाते समय उसे
देख कर मुस्कुराते हुए बाय कर रही थी.उसे बड़ी उलझन सी हो रही थी .सुबह मुश्किल से उठ सका जल्दी से फारिग हो कर घर के लिए निकला ऑटो पकड़ के ,पहुँच कर जल्दी से अपने कुछ जरुरत के सामान रख जाने लगा था की माँ चाय ले आई जब तक चाय खतम हुआ उसने दो चार बातें पूछी पापा भी फिर से सब कुछ अच्छा से निपटाने के लिए
बोला .वह संध्या से मिलना चाहता था पर समय नहीं था सो उसे बिना मिले ही जाना पड़ा .
वापस जाने पर मालूम हुआ की सब तैयार हो रहे हैं .वह भी नहा कर तैयार हो गया कुछ देर में सुखिया को
देखा उसके लिए नाश्ता ले कर आया था.” राम राम भैयाजी " “अरे कैसे हो सुखिया " “ठीक हैं भैया जी आप नाश्ता
कर लीजिए .थोड़ी देर में फिर आता हूँ थोड़ा जल्दी है .”कह कर टेबल पर ट्रे रख कर वो चला गया दरअसल सुखिया
को उसके पापा अपने गाँव से कर आये थेघरेलु कामों में माँ को एक सहायक चाहिए था.काफी सालों तक तो ये उसी के घर पर था फिर एक दिन पापा इसे बड़े सह्बके यहाँ भेज दिए उन्हें भी इसकी जरुरत थी.कुछ देर के बाद सुखिया
फिर से ट्रे ले कर आया और दुबारा प्लेट में कचौरी डालने लगा "बस नहीं चाहिए अब"भैया भर पेट अच्छी तरह से खा कर जाईये पता नहीं फिर कितनी देर बाद खाने को मिले मैं चाय लेकर आता हूँ .”खाने के बाद चाय भी पी लिया
पर वे लोग शायद अभी तक तैयार नहीं थेमैं फोन करने के लिए बाहर जाने वाला था की सुखिया बर्तन उठाने आगया
"कहाँ जा रहे हैं भैयाजी?” "घर फोन करने बूथ पर जा रहा हूँ " “यहीं पर से कर लीजिए न ये तो रहा फोन.” मेरी
नजर गयी तो देखा फोन तो बगल में रखा था .फिर तो संध्या से काफी देर तक बातें की.”अपना ध्यान रखना और
जल्दी से लौटने की कोशिश करना.” “हाँ संध्या मैं भी जल्द से जल्द लौटना चाहता हूँ इस तरह का काम करना मुझे अच्छा नहीं लगरहा है ये तो पापा की वजह से मैं राजी हो गया अच्छा अब रखता हूँ कोई बुलाने आरहा है ओके बाय.” “बाय नवीन मैं इन्तजार करुँगी .” "साहब जी कुछ और चाहिए?” “हाँ ओह एक कॉफी और ले आओ.उसने वेटर से कहा जो उसे अजीब नजरों से देख रहा था .
नवीन को दस दिनों तक लगातार इन सब के साथ जगह जगह जाना पड़ा इस बीच डौली उसके साथ काफी घुल मिल गयी थी एक बार तो आगे की पढ़ाई करने के लिए लन्दन सबसे अच्छा रहेगा कह कर उसे साथ में
रहने के लिए भी ऑफर दिया .”यहाँ से अच्छा आपका भविष्य लन्दन में होगा इस पर सोचियेगा. " मैं क्या कहता की
सिर्फ सोच लेने से ही तो हर कोई वहाँ नहीं चला जाता है .पर नहीं चाहते हुए भी लन्दन के सपने जरुर देखने लगा था
एक दिन डौली ने उस से पूछा "क्या आपको पता है हम यहाँ क्यों आये हैं ?” “अपना देश अपना गाँव अपने रिश्तेदारों से मिलने और किस लिए?” “तुम बड़े भोले हो कह कर उसने मेरी नाक पकड़ के हिला दिया और वहाँ से चली गयी .मैं कुछ भी नहीं समझ पाया बेवकूफ की तरह दरवाजे की और देखता रह गया जिधर से अब तक डौली के सेंट की तेज
मदहोश कर देने वाली खुशबू आ रही थी.बाद में उसी ने बताया की वह और उसके मम्मी डैडी शादी के लिए लड़का
पसंद करने आये हैं और उसे मेरी तरह का ही लड़का पसंद होगा सो भी बताया यानी की लन्दन आने का न्योता देने का ये कारण था.पटना वापस आते समय तक मेरे दिमाग में काफी उथल पुथल मची थी.दिल इस बात की गवाही नहीं दे रहा था पर दिमाग कहता सबको ऐसा अवसर नहीं मिलता है मैं कुछ भी तै नहीं कर पा रहा था .लौटने के बाद जब घर जाने लगा तो डौली ने मुझे अगले दिन फिर आने को कहा .कमलकान्त जी भी बोले"बरखुरदार तुम्हे कल फिर आना ही होगा ये डौली का हुकुम है तुम इनकार नहीं कर सकते हो. " ये कह कर जोर से ठहाका लगा कर हँस दिए. “ जी अंकल मैं आजाऊंगा मन ही मन सोचने लगा जो डौली चाह रही है क्या उसके मम्मी डैडी और उसके मौसा मौसी को मंजूर होगाये सब सोचते हुए लगा की मै ये क्या सोचने लगा संध्या मेरे बारे में क्या सोचेगी नहीं ये ठीक नहीं सारे रास्ते यही सब सोचता रहा अंत में निर्णय लिया की मैं कल नहीं जाऊंगा तबियत खराब होने का बहाना बना दूँगाघर पहुंचते ही मम्मी पापा ने एक एक बातों के बारे में विस्तार से पूछना शुरु कर दिया मुझे तो शक होने लगा
कहीं इन सब बातों में इन दोनों की सोच तो शामिल नहीं हैक्योंकि मेरे पापा बड़ी दूर की सोचते हैं खास कर उनके
लाभ की बात हो तब .खैर उनलोगों की कुछ बातों का जवाब दे कर मैं काफी थक गया हूँ कह कर अपने कमरे में सोने
चला आयारात बड़ी देर से सोया काफी देर तक सोचता रहा पर कुछ तै नहीं कर पाया था .अचानक दिलीप की आवाज सुनायी पड़ी "आंटी नवीन आया क्या ?” “ हाँ बेटा अभी अपने कमरे में ही है शायद उठा नहीं है अभी उठाती हूँ
मैं " “ नहीं मैं उठाता हूँ आप तो अच्छी सी चाय बना कर शीला को बोलिए दे जायेगी कमरे में.” “ ठीक है बेटा मैं
अब और सो नहीं सकता था सो उठ कर जाने लगा और दिलीप को बैठने बोला तू बैठ में अभी दो मिनट में फ्रेश हो कर आया.” “ठीक है जल्दी आ तुझसे ढेरों बातें करनी है "कुछ देर बाद ही हम चाय की चुस्की के साथ बातें करने बैठ
गए ”तू किस काम से इतने दिन गायब रहा संध्या से पुछा तो वो कुछ बता रही थी की किन्ही गेस्ट को इंटरटेन करने गए थे ,तूने ये धंधा कब से शुरु कर दिया ?” ” कुछ नहीं यार वो पापा के कहने पर कमलकांत जी के यहाँ चला गया था उनके सम्बन्धी लोग लन्दन से आये हैं उन्ही लोगों को घुमाने जाना पड़ा.” “ वो सब तो ठीक है यार पर तू क्यों इन
झमेलों में पड़ता है तुझे तो अंकल से साफ मना कर देना चाहिए था.वे लन्दन से हों या अमरीका से तुझे क्या लेना देना
तू क्या उनका कर्मचारी है जो घुमाने जायेगा .” अरे पापा के कारण जाना पड़ा वे हमारे रिश्तेदार भी तो है न .” “ हूँ
बड़े आये रिश्तेदार ,सिर्फ काम लेने के रिश्तेदारी होती है क्या ?” “ छोड ना यार अब इस बातको ".”अच्छा चल कहीं बाहर चलते हैं संध्या से भी मिलते हैं .” इतने में नवीन के पापा ने उसे आवाज लगायी नवीन जल्दी से तैयार हो कर आजाओ कुछ काम से मेरे साथ तुम्हे चलना है .” “सौरी यार ,अब पापा इस समय कहीं जाने नहीं देंगे .आता हूँ लौट कर तब सब इक्कठे हो कर बैठते हैं ” " “ तेरे पापा और उनका काम पता नहीं अब कैसा काम होगा औरदिलीप थोड़ा उदास हो कर चला गया नवीन भी झुंझला उठा दस दिनों तक तो इन्ही के कारण दोस्तों से दूर था अब क्या काम आ गया है उस से पापा को पर अपने पर काबू करके गया .” क्या है पापा ?” भरत बाबू सब समझ रहे थे पर अभी बेटे को
नाराज नहीं कर सकते थे सो मीठे आवाज में बोले बेटा बड़े बाबू तुम्हे याद कर रहे थे तुम्हारी बड़ी तारीफ भी कर रहे थे की काफी होनहार है नवीन ,चल बेटा बुला रहे हैं तो जाना चाहिए .”कुछ सोच कर नवीन जाने को तैयार हो
गया ,अपनी तारीफ उसे अच्छी लगी.पर संध्या से नही मिल पाया था अभी तक सो मन में कहीं अपराध की भावना जाग रहा थाखैर अब लौट कर मिल लूँगा.
रास्ते में पापा ने बताया की कुछ लड़के वाले इन लोगों से मिलने आ रहे हैं साथ में लड़के भी .उन्ही के लिए कुछ तैयारी करनी है .डौली बेटी को जो पसंद होगा उसे ये लोग जाँच परख कर फाईनल कर लेंगे फिर पन्द्रह दिनों में शादी करके वापस चले जायेंगे.नवदम्पत्ति एक महीने के लिए स्वीटजरलैंड हनीमून के लिए जायेंगे फिर उधर से ही लन्दन वापस हो जायेंगे .”बड़े मालदार असामी लगते हैं ये लोग " “हाँ बेटा इनके तीन पीढ़ी वहीँ पर डाक्टरी का
पेशा में बिता चुके हैं इसलिए इनके पास अकूत धन संपदा है .पिछले दो पीढ़ी में सिर्फ एक बेटा हो रहा था और सब डाक्टर ही बनेपर इनकी तो सिर्फ एक बेटी ही है इसी से लड़का भी डाक्टर ही चाहिए जो भी इनकी बेटी से शादी करेगा समझो उसकी तो लाटरी निकल जायेगी .पर लोगों को अभी इसके बारे में ठीक ठीक पता नहीं है वरना तो इनके घर मेला लग जाता .वो तो बड़े साहब ने मुझे ये इसलिए बताया की इन्ही के अनुरूप मै लड़का देखूं वरना तो मै भी
कुछ ज्यादा नहीं जानता थाअपनी बातों का क्या असर हो रहा है देखने की लिए कनखियों से नवीन को देखा तो लगा की तीर सही निशाने पर लगा है .थोड़ा बढ़ा चढा कर कर बोल रहे थे भरत बाबू सदानद बाबू के पिता जी गए थे
इंग्लैंड वो भी पता नहीं क्या करते थे सो मालूम नहीं था पर खूब पैसे वाले जरूर थे.”बेटा मेरी तो दिली ख्वाहिश थी की तुम्हारा विवाह इनकी सुपुत्री से होता तो हमारे भी भाग जाग जाते शीला की शादी तब किसी अछे घराने के अच्छी
नौकरी वाले सुपात्र से हो जाती तुम भी वेदेश में रह कर सुख भोग पाते पर हमारा खोटा नसीब.”इतना कह कर एक ठंढी साँस ली उन्होंने.”पापा वे मुझे क्यों शादी के लिए चुनेंगे उनके सामने हमारी बहुत साधारण हैसियत है .”बेटा तुम
अगर राजी हो जाओ तो मै सब अपने अनुकूल कर लूँगा. " पर पापा संध्या का क्या होगा?” बेटा अभी तक कुछ भी तो ऐसा नहीं हुआ है की तुम कहीं और रिश्ता नहीं कर सकते हो अपने भविष्य के बारे में सोचो संध्या की शादी भी कहीं
अच्छी जगह ही होगी आखिर वो भी तो एक डाक्टर है मैं उसके लिए अच्छा रिश्ता खोजूंगा.और इस तरह नवीन अपने स्वार्थ के आगे बिक गया .
साहब ये आपकी चौथी कप थी क्या और कॉफी लाऊं ?” “ तुम्हे अगर ऐतराज नहीं हो तो ले आओ .”
जी साब.” बैरे के जाने के बाद वो फिर से अपने में गुम हो गया. "अजीब इंसान है सिर्फ कॉफी ही पिए जा रहा है "
बैरा बडबडाते हुए कॉफी लाने चला गया.
डौली तो अपनी मनसा पहले ही जता चुकी थी सो नवीन के पापा को ज्यादा कुछ करना नहीं पड़ा सब कुछ आसानी से होता चला गयाअसल में जितने भी आसामी बुलाये गए थे वो सच में पसंद के काबिल नहीं थे कोई ना कोई नुक्स सभी लड़कों में था और ये सब भरत बाबू का ही तिकडम से हो रहा था .एक दो बार बड़े साहब ने पूछा भी "क्या अपने बिरादरी में ऐसे ही छंटे नमूने आपको दिखे थे ?” ”सर अब इसमें मैं क्या कहूँ मैं तो सिर्फ डाक्टरों पर ही ध्यान दिया था सब के सब ऐसे निकलेंगे ये तो मैं भी नहीं जानता था.”घर में थोड़ी मायूसी छ गयी थी तब डौली ने अपनी माँ से कहा आप सब इतना परेशान क्यों हैं मैंने अपने लिए लड़का पसंद कर लिया है जो आप सबकी कसौटी पर भी खरा
है .” "एक स्वर में सबने पूछा कौन सा लड़का एक भी तो तुम्हे पसंद नहीं आया था ?” "उसमे से नहीं है? “
“ तब कौन ?” “नवीन" “क्या ?” "हाँ मुझे वो अपने लिए पसंद है मैं उसी से शादी करुँगी और ये मेरा पक्का फैसला है.”
सब कोई थोड़ा नानुकर करने के बाद तैयार हो गए शादी के लिए .अगले दिन भरत बाबू को सब कुछ तै करने
के लिए बुलाया गया .जाने के पहले पिता पुत्र को बड़े साहब की तरफ से बधाई भी मिला. " भरत बाबू अब तो आप हमारे समधी बनने जा रहे हैं मुंह मीठा करते जाईये ". “जोड़ी तो ऊपर से ही तै रहता है हमने तो ऐसा सोचा भी नहीं था सर .” “चलो सब बड़ों का आशीर्वाद लेलो नवीन से उन्होंने कहा तो वह सभी बड़ों का पैर छू कर आशीर्वाद ले कर जब सीधा हुआ तो डौली को शरारत से मुस्कुराता पाया इसबार वह भी मुस्कुराया .
रास्ते भर भरत बाबू के उत्साह का का कुछ पूछना ही नहीं था नवीन को प्यार से पहले ढेरों आशीष ही
देते रहे "बेटा तुम अपने घर को जो खुशी दे रहे हो भगवान तुम्हे इसका सुफल जरुर देंगे.अब शीला के लिए एक से एक अच्छा रिश्ता मिलेगा हमारा बुढापा चैन से कटेगा ,जीता रह बेटा.” नवीन के मान में जो संध्या के नाम का फाँस
चुभ रहा था वो पापा के इस कथन से काफी हद तक दूर हो गया उसे लगा वो जो कर रहा है अपने परिवार के खुशी के लिए .उसने अपने प्यार की आहुति ही तो डाली है संध्या को ये सब समझना होगा .अब उसे अपने फैसले पर कोई
भी अफसोस या मलाल होने के बजाय खुशी हो रही थी .घर पहुँचने के बाद ये खबर सुन कर माँ और शीला की खुशी देख रहा सहा संकोच भी दूर हो गया.
शादी के पहले सिर्फ एक बार वह संध्या से मिला था बात पक्की होने के अगले ही दिन पार्क में
उसे आने के लिए फोन करके बुलाया था शाम के पांच बजे दोनों पार्क के बेंच पर बैठ कर बातें की थी और ठीक एक घंटे बाद सात बजे संध्या वहाँ से उठ कर जा चुकी थी .इस एक घंटे की बातों को वह याद भी नहीं करना चाहता था पर
आज जैसे ना चाहने पर भी सारी यादें जबरदस्ती ही ताजा हो कर किसी फ़िल्म की तरह आँखों के आगे आगईं थी.उसके
द्वारा सारी बातें सुन कर संध्या पहले तो उसे अजीब से नजरों से बहुत देर तक देखती रही बिना कुछ बोले बिना दुखी
हुए .वो ही घबरा गया था उसकी नजरों को झेल नहीं पा रहा था.आखीर में जब उस से रहा नहीं गया तो वह संध्या के
बाँहों को पकड के बोला "तुम कुछ बोलती क्यों नहीं क्या मेरी बातों को समझ नहीं पा रही हो सच में मैं तुम्हारा गुनहगार हूँ पर अपने परिवार के खातिर ये सब करने को मजबूर हूँ हो सके तो मुझे माफ कर देना. ” “मैं तो उलटे तुम्हे
धन्यवाद देना चाहती हूँ की तुम्हारी वजह से समय रहते मै जान गयी की तुम मेरे लायक नहीं थे अगर शादी के बाद जानती तो जिंदगी भर के लिए पछतातीतुम मेरी चाहत थे अब ये सोच कर ही हंसी आती है .खैर तुम्हारी वजह से ही
आज मुझे ये मौका मिला है की अपनी गलतियों से सीख लूँ हर चमकती चीज सोना नहीं हो सकती है ये जानती थी पर आज मान भी गयीअभी तक की दोस्ती के खातिर ही सही भगवान से तुम्हारे लिए प्रार्थना करुँगी तुम्हारी शादी सफल हो जो चाहते हो वो तुम्हे मिले .अब मैं जाती हूँ यहाँ से भी और तुम्हारी जिंदगी से भी गुड बाय .नवीन एकदम भौंचक
सा रह गयाउसके समझ में कुछ भी नहीं आरहा था वह तो समझा था संध्या दुखी होकर रोएगी उसके सामने अपने प्यार की भीख मांगेगी या गुस्से में लड़ेगी उसे बुरा भला कहेगी पर संध्या ने तो ऐसा करने के बजाय उसकी इस तरह
से इज्जत उतार कर रख दी जिसकी उसने कल्पना भी नहीं की थी.और तो और एकदम शान्ति के साथ आराम से चली गयी जैसे कुछ हुआ ही नहीं हो .नवीन इस अपमान को बहुत मुश्किल से झेल पाया अंदर तक वह सुलग रहा था .पर
किसी से कुछ कह भी नहीं सकता था .इतने वर्षों के बाद आज उसे लगता है संध्या ने बिलकुल सही कहा था वह उसके
काबिल सच मच में नहीं था .अगर संध्या ने वही किया होता जो उसने उसके साथ किया तो क्या वह बर्दास्त कर पाता
हरगिज नहीं उलटे वो बदला लेने की सोचतापता नहीं सब कहाँ चले गए .एक बार संध्या और दिलीप से माफी मांग
लूँगा तो शायद कुछ चैन मिले मन बहुत अशांत हो गया था.” सब रेस्टोरेंट बंद हो गया है अब आप जाईये .” बाहर
निकलने पर लगा लिली घर पर चिंता में उदास बैठी होगी बेचारी लिली उसका क्या कसूर था जो उसे ऐसी सजा
मिल रही है .”नवीन तेज क़दमों से कार की और बढ़ा
कॉलोनी से लेकर कालेज तक सब जगह उसने पता कर लिया पर अभी तक कुछ भी पता नहीं लगा पाया था संध्या और दिलीप का उसका मन उदास हो गयाकल उसे वापस जाना है शिमलालन्दन से लिली के साथ आकार वह शिमला के एक हॉस्पिटल में नौकरी कर ली थी वहीँ पर एक बंगला ले लिया था लिली भी अब वहीँ के शेरवुड कॉलेज में पढाने लगी थी इस हादसे के कुछ महीने बाद .नवीन के माता पिता तो एक हादसे में एक साथ मारे गए थे अब तो बस एक मात्र बहन थी पर उसके इंजीनयर पति ने यहाँ का सब कुछ बेच कर आस्ट्रेलिया में परिवार के साथ बसने के इरादे से वहीँ नौकरी कर ली थी.पिछले पांच सालों से वे वही पर हैं .अब तो शायद वहीँ के हो जायेंगे.
होटल पहुँच कर रूम में देखा लिली कोई किताब पढ़ रही थी उसे देखते ही बोली पापा कहाँ थे आप बड़ी देर कर दी मोबाईल भी यहीं पर छोड़ कर चले गए थे मुझे चिंता हो रही थी. “ सौरी बेटा ध्यान नहीं रहा था .तुमने खाना खाया ?” “ नहीं अब आपके साथ ही खाऊँगी " “ मुझे देर हो तो तुम खाना खा लिया करो लिली " “ मुझे
अकेले खाना अच्छा नहीं लगता है पापा आप तो जानते हैं .”अच्छा तुम आडर करो खाने का तब तक मै फ्रेश हो कर
आता हूँ .” खाते समय मै लिली से कल के बारे में प्लान किया बेटा कल रात की दस बजे की गाड़ी से हमें लौटना है
तो जहाँ भी घूमना हो या कुछ खरीदना हो सब शाम सात बजे तक करना है तुम प्लान बना लो .” “ पापा आप जिनसे
मिलने आये थे उनसे मिले ?” “ नहीं उनलोगों का कुछ पता नहीं मिल रहा है क्या पता कभी मिल भी पाऊंगा या नहीं अब ? “ पापा उदास मत होईये कभी ना कभी जरुर मिलेंगे .” अगले दिन बाप बेटी खूब घूमें नवीन उसे अपने कॉलेज ले गया वहाँ पर कुछ पुराने दोस्त अभी भी थे उन सब से मिलवाया फिर अपने कालोनी वाला घर और अपना स्कूल सब कुछ दिखलाया अपने पसंद के रेस्टोरेंट में खाना खिलाने के बाद कुल्हड़ में चाय पिलाया उसके बाद ढेरों शापिंग की और होटल लौट गए .कुछ देर तो जा कर उन्होंने आराम किया .उसके बाद पैकिंग की नहा कर फ्रेश होने के बाद खाना
मंगा कर खाया तब तक निकलने का टाइम भी हो गया था .बड़े ही भारी मन से इस शहर से विदा लेकर वे लोग स्टेशन
पर पहुंचे .अपने डब्बा में सब सामान सेट कर के बैठ भी गए कुली अपना पैसा ले कर जा चूका था पर अभी दस मिनट बाकि था वे लिली को बोले मै चाय ले कर आता हूँ ना जाने फिर कब कुल्हड की चाय पी पाउँगा ?थोड़ी देर में जब वो चाय ले कर आये तो डब्बे में काफी लोग भर चुके थे बड़ी मुश्किल से अपने सीट तक चाय सम्हालते आये .”लो बेटा चाय लिली ने कुल्हड़ पकड लिया .दोनों चुप चाप चाय की चुस्कियां लेते हुए इधर उधर देख रहे थे.इतने मै एक भरे
बदन का अधेड सा व्यक्ति अपने बर्थ का नम्बर देखता हुआ उनके पास आया "मिल गया देखो ये रहा सोलह ,सत्रह मिली तुम अनु के साथ यहाँ बैठो सुनील तुम और राहुल दो केबिन छोड़ के हमारा जो सीट है वहाँ पर चले जाना " "पापा हम सब एक साथ रहेंगे " “बेटा जहाँ पर जगह है वहीँ पर जाना होगा .”"अंकल क्या हम सब यहाँ पर बैठ
सकते हैं ?” "जरुर बेटा मै उधर जाकर बैठ जाता हूँ सोने के समय लेकिन आ जाऊंगा तब तक बैठो .”लिली तुम यहीं पर रहो .” “जी पापा "असल में लिली को उन सभी के साथ खुश होकर बाते करते देख नवीन को अच्छा लगा
इसी लिए उसे वहीँ बैठने को कहा था.नवीन गौर से उस अआदमी को देख रहा था जो उसके साथ सीट दिखाने के लिए उसे लग रहा था की वह इसे जानता है पहचाना सा चेहरा लग रहा था एकाएक उसे याद आ गया दिलीप हाँ ये दिलीप ही है अब वो आदमी भी रुक कर नवीन को घूर रहा था दिलीप तुम यार कह कर नवीन उस से लिपट गया"ओ हो नवीन मैं भी तुझे देख कर सोच रहा था कौन है जो इतना जाना पहचाना सा लग रहा है ?.कितने सालों बाद मिले हैं हम चल बैठ कर बात करतें हैं वैसे तू जा कहाँ रहा है?” “ शिमला " “क्या हम सब भी शिमला ही जा रहे हैं घूमने " "सुनील जा कर मामी से बोल मैं कुछ देर में आता हूँ .” “अच्छा मामाजी . " “कब आया इण्डिया ?तू तो हम सब को बिलकुल भूल गया." " तेरी एक एक बातों का जवाब मैं दूंगा पर ये तूने खूब कही पिछले चौदह दिनों से मैं और क्या कर रहा था तुझे ही तो खोजने पटना आया था आज निराश होकर वापस जा रहा था .कहाँ हो तुम किसी ने नहीं बताया किसी को पता ही नहीं था.” “ हाँ बहुत सालों से यहाँ पर मेरा किसी से संपर्क ही नहीं रहा.शुरु में मै एक दो जगहों पर नौकरी करके छोड़ा पर अब तो बीस वर्षों से दिल्ली में ही हूँ .तू अपनी सुना क्या कर रहा है यहाँ घूमने आया है या किसी कांफ्रेंस में आया है तेरा परिवार कहाँ है हम पूरे सत्ताईस सालों के बाद मिले हैं ? “ ना तो मै घूमने आया हूँ ना ही कांफ्रेंस में मै यहाँ तुझे ही ढूंढने आया था संध्या का नाम नहीं ले पाया वह और फिर पुकारा "लिली लिली जो इन सब से अब तक घुल मिल गयी थी चौंक कर बोली "जी पापा " ”ये है मेरी बेटी लिली .बेटा इनके पांव छूकर आशीर्वाद लो ये दिलीप अंकल हैं मेरे बचपन के दोस्त " “आप इन्हें ही तो खोज रहे थे ना पापा मैंने आपसे कहा था न उदास मत होइए ये जरुर मिलेंगे "पैर छूने के बाद लिली ने कहा .”बड़ी प्यारी बेटी है खुश रहो क्या कर रही हो " "जी पढाती हूँ मै कॉलेज में " “यानी प्रोफेसर हो ?”“हाँ अंकल".उसके बाद चारों बच्चों का परिचय करवाया गया "सुनील मेरी बहन रेखा का बेटा है ये बैंगलौर के मल्टी नेशनल कंपनी में काम करता है अनु गोपाल की बेटी है यानी संध्या के भाई की बेटी और मिली मेरी बेटी इन दोनों ने अभी अभी अपनी जर्नलिज्म की पढ़ाई खत्म की है और ये मेरा बेटा राहुल ये मैनेजमेंट कर के एक कम्पनी में काम कर रहा है सब बारी बारी से झुक कर पैर छू कर प्रणाम करने लगे उसने सभीको आशीर्वाद दिया .उसके दिमाग में सिर्फ संध्या का नाम घूम रहा था पर पता नहीं उसके बारे में पूछने में संकोच हो रहा था .” दिलीप फिर पूछा "तूने तो बताया नहीं तू कहाँ है अभीडौली कहाँ है क्या वो नहीं आई है ?” “बताता हूँ तेरे एक एक सवाल का जवाबसात साल से यहीं शिमला में हूँ अपनी बेटी के साथडौली के साथ मेरा तलाक हो चूका है वो लन्दन में ही रहती हैनौकरी करता हूँ शिमला के एक हॉस्पिटल में अब सब बातें जान चूका है तो अब तू भी मेरे सवालों का जवाब दे संध्या कहाँ है मै उस से भी मिलना चाहता हूँ . ” पूछ लिया नवीन ने "उस से भी मिलवा दूँगा पर तू मुझे ये बता की तेरे और डौली का तलाक क्यों हुआ ?तुम दोनों तो काफी खुश थे इस शादी से फिर ऐसा क्या हो गया की अलग होने की नौबत आगई .? “ "अब क्या बताऊँ यार ये मेरे ही कर्मों का फल है अच्छी खासी जिंदगी थी मेरी अपने ही लालच से
तबाह कर लिया .” “देख पहेलियों में नहीं खुल के बता क्या हुआ था ?” “ मेरे पापा को तो तू जानता ही था वे कितने
महत्वाकांक्षी थे उन्होंने मेरे आगे ऐसी परिस्तिथि बना दी थी की अगर मै उनकी बातों को ना मानूं तो मेरा परिवार
बेहाल हो जायेगा ,बहन की शादी सिर्फ मेरी वजह से रुक जायेगी ,और की मेरी भी खुशहाली इसी में है .माँ और शीला भी उनके इस काम के सहयोगी थे पर ऐसा नहीं है की इन बातों में मेरा कोई दोष नहीं था मै भी तो विदेशी
सपनों को देखने लगा था उस पर डौली का बेबाक निमंत्रण और उसकी ख़ूबसूरतीसब से बढ़ कर लालच उसके पिता
के दौलत का था.जिसे पापा ने बड़ी चालाकी से पारिवारिक कर्तव्य का रूप बना दिया था.मै सब समझ रहा था पर खुद को रोक नहीं पाया जिस सब का ये नतीजा है .” “ शादी कर के तू वहाँ गया तब तक तो सब ठीक था फिर क्या हुआ?”
दिलीप सब जान लेने को उत्सुक था
शादी के बाद का एक महीना तो बहुत ही शानदार रहा हम हनीमून पर विदेशों की सैरसपाटों में एक दूसरे की बांहों में पूरी तरह डूबे हुए थे यों लग रहा था मुझे की स्वर्ग में आ गया हूँ .पर लौट कर लन्दन आने के कुछ ही महीने बाद सारी बातें खुलती गयीं.उन्हें एक ऐसे गुलाम की जरुरत थी जो उनके घर क्लीनिक और बेटी सब कुछ
संभाले मै भी उनकी सारी जिम्मेदारियों को ठीक से निभाने लगा था सिवाय उनकी बेटी के .कुछ दिनों तक तो डौली
का मेरे प्रति अच्छा व्यवहार था पर अगर मै उस से कभी पूछ लेता कहाँ थी बड़ी देर से आई तो वो गुस्से से पागल हो
मुझे अनाप सनाप कहने लगती मैं कुछ समझ नहीं पाता की ऐसा क्या कह दिया जो ये इस तरह का बर्ताव कर रही है
पर मै कुछ कहने लायक था भी तो नहीं .धीरे धीरे पता लगा की डौली एक मनमौजी लड़की है किसी भी बंधन को वो
नहीं मानती ये शादी सिर्फ उस के माँ बाप की जिद के चलते हुई है जो बेटी के द्वारा एक वारिस चाहते थे नहीं तो डौली
शादी करने वाली लड़कियों में से नहीं थी .उसके दसियों लड़कों के साथ दोस्ती थी.मुझे लगा की मैने जो संध्या के साथ
नाइंसाफी की है उसी का ये दंड है लौट कर जा नहीं सकता था क्योंकि डौली के पापा ने मुझसे साफ साफ कह दिया था की वे इसी समझौते के तहत पापा को एक करोड़ रुपया दिए थे की कम से कम दस साल और एक वारिस जब तक नहीं हो मैं डौली को तलाक नहीं दे सकता हूँ वरना उनके सारे रूपये लौटाना होगा.मैं जानता था रूपये कभी नहीं लौटा
सकता हूँ .सो हालात से समझौता कर लिया मैंने भीशादी के दो तीन महीने बाद ही डौली के गर्भवती होने की बात पता चली मैं खुश हुआ की कम से कम इस बच्चे का पिता तो मै ही हूँ ये पक्का है वरना पता नहीं किसी जान या टाम के
बच्चे का नकली बाप भी वह बना सकती थी .उसके माँ बाप की खुशी का तो ठिकाना ही नहीं था पर डौली वो तो इस बच्चे को पैदा ही नहीं करती मगर उसके पिता उसे पैसे देना बंद कर देंगे इस मजबूरी के कारण लिली इस दुनिया में आई
खैर उसके के आने से मुझे जीने का एक मकसद मिल गया.बेटी के होने से भी डौली में कोई बदलाव नहीं आया यहाँ तक की लिली बीमार भी होती तो वह अपने रोज का टाइम टेबल नहीं बदलती उसकी माँ उसे कुछ कहती तो उन्हें भी वह डपट देती थीधीरे धीरे उसके माता पिता उसे छोड़ मुझे ज्यादा अपना समझने लगे पर उसका रवैया नहीं बदला कभी कभी तो वे मुझसे माफी मांगते उनके स्वार्थ की वजह से मेरा जीवन बर्बाद हो गया है .
लिली के नाना जी को जब दूसरा हार्ट अटैक आया तो वे अपने वकील को बुला कर अपना सब कुछ लिली और मेरे नाम आधा आधा कर दिए .लिली के बालिग होने तक में उसके हिस्से की देख भाल करूँगा.अपनी बेटी
को उन्होंने कुछ नहीं दिया अगर वो ठीक से रहे तो मै उसका खर्च देता रहूँ वरना बंद कर दूँ ये मेरे मर्जी पर था माँ तो
बेचारी पहले ही गुजर चुकी थीं पापा भी एक साल के अंदर ही तीसरे अटैक में चल बसे.जब लिली को वसीयत के बारे में पता चला तो क्या हंगामा उसने किया की पूछो मत.उसने तो अपने मरे माँ बाप को भी बुरा भला कहने से गुरेज नहीं किया.लिली बड़ी हो रही थी माँ से वह कोई सरोकार नहीं रखती थी उसके जीवन में सिर्फ पापा थे .एक तरह से वो माँ को नहीं जानती थी .और जितना जानती थी तो उतनी ही नफरत भी करती थी.रोज रोज के हंगामे से तंग आकर मैंने डौली से एक सौदा किया . " तुम अगर मुझे तलाक दे दो तो मै अपने हिस्से को तुम्हे दे सकता हूँ पर तुम्हे लिली को भी मेरे कस्टडी में देना होगाऔर वह पैसे के लिए तुरंत तैयार हो गयी .इसके बाद की कहानी बस ये है की
उसे अपना हिस्सा देने के बाद मै कोशिश कर के शिमला में आ गया लिली को भी अपने साथ लेता आया यहीं पर वो अपनी पढ़ाई पूरी कर नौकरी कर रही है .”अपनी लंबी कहानी सुना कर नवीन थोड़ी देर के लिए चुप हो गया जैसे अतीत उसका पीछा कर रहा हो .” बड़ी दर्द भरी है तेरी जिंदगी पर तेरी बेटी बड़ी ही प्यारी है इस पर डौली का कोई असर नहीं है ये तेरे दिए संस्कार हैं .” “ हाँ दिलीप ये सच है पर साथ ही मेरा खोटा नसीब भी इसे विरासत में ही मिला है .” "क्यों क्या हुआ ?” “ अभी कुछ ही महीने हुए हैंइसकी शादी होने वाली थी बहुत देख भाल कर रिश्ता मैंने पक्का किया थाशादी का सारा इंतजाम भी ठीक से हो गया था की ठीक शादी के ही रोज डौली आ गई पता नहीं उसे कहाँ से शादी की भनक लग गयी थी .वो जिद करने लगी की शादी में वह भी शामिल होगी जब की मैंने लड़के वालों को बताया था की लड़की की माँ नहीं है .काफी झगडे के बाद भी मैं उसे लड़के वालों से मिलवाने को जब तैयार नहीं हुआ तो जिद में आकार वह खुद से ही मिलने चली गयी मै रोकता रह गया पर कम्बखत ने अपनी बेटी का भी ख्याल नहीं किया ,और वही हुआ जिसका मुझे डर था बरात बिना शादी के ही वापस लौट गयी .जाने के पहले लड़के
के पिता ने बस इतना ही कहा था हमें आपसे पूरी सहानुभूति है पर मैं अब ये शादी नहीं होने दे सकता हूँ क्योंकि
हमारा समाज ऐसी माँ की बेटी को कभी स्वीकार नहीं करेगा. " तब से लिली ने शादी ना करने का फैसला कर लिया है ये सब इस लिए है क्योंकि मैंने संध्या को धोखा दिया था.उसका फल तो मिलना ही था .पर मैं एक बार संध्या से मिल
कर माफी जरुर मांगना चाहता हूँ शायद लिली का रूठा किस्मत बदल जाए और मुझे शान्ति मिले .अगर तू उसका पता
जानता है तो प्लीज बता दे मै कब से ढूंढ रहा हूँ उसे.” “चल मै तुझे उस से मिलाता हूँ.” “देख दिलीप इस बारे में कोई मजाक मत कर यार.” “मैं कहाँ मजाक कर रहा हूँ तू उठ तो सही "पर नवीन को लगा की वो अभी भी मजाक के मूड में ही है इस लिए वो अपनी जगह से नहीं हिला. "ठीक मै उसीको बुला कर ले आता हूँ .” दिलीप उठ कर चल दिया तो
नवीन को कुछ समझ में नहीं आया की वो उसकी बात को सच माने या झूठ वह उसका इन्तजार करने लगाकुछ ही देर में दिलीप एक आकर्षक महिला के साथ आता दिखा .उस औरत के आँखों पर चश्मा था बालों में कुछ कुछ चांदी दिखने लगी थी शरीर भी कुछ भारी था मगर नवीन ने उसे दूर से ही पहचान लिया वो संध्या ही थीआते ही उसने
मुस्कुराते हुए कहा "नवीन तुम तो जरा भी नहीं बदले अभी भी पहले की तरह ही दीखते हो सिवाय इन कुछ सफेद
हो गए बालों के .मुद्दत हो गया था तुम्हे देखे हम बराबर तुम्हे याद करते थे.” “नवीन आवाक सा देखता रहा उसके
मुंह से बोल ही नहीं निकल पाए .चलो खिसको हमें बैठने का जगह दो .सब जब बैठ गए तब नवीन ने कहा संध्या तुम
भी इसी ट्रेन में कैसे ?” लो सुनो इसकी बातअरे दिलीप और मै पति पत्नी हैं तो साथ में यात्रा कर ही सकतें हैं इसमें
चौंकने वाली क्या बात है.” “ नवीन दिलीप को घूर कर जब देखा तो वह हँसने लगा.”तूने मुझे अब तक बताया क्यों नहीं ?” “सच यार तेरी कहानी सुनने में ध्यान ही नहीं रहा मुझे उसके बाद सोचा तुझे सरप्राईज दूँ .” “ जानती हो संध्या ये बरखुरदार अपने को तुम्हारा गुनहगार मान कर कब से तुमसे माफी मांगना चाह रहा है.” “क्या और जानते हो नवीन मै तुम्हे धन्यवाद कहना चाहती थी.अगर हमारी शादी हो भी जाती तो शायद निभ नहीं पाती उस समय तो नहीं समझती थी पर बाद में समझ आया की मेरी जोड़ी तो दिलीप के साथ ही बनने के लिए था.इसी लिए तुमसे अलग होने का मुझे कोई दुःख नहीं हुआ था.दिलीप मुझसे प्यार करता था पर मेरा झुकाव तुम्हारी ओर देख इसने कभी बोला नहीं जब शादी करके तुम चले गए तो इसे लगा की मै दुखी हूँ तो ये मेरा दुःख कम करने के लिए हर संभव कोशिश
करता एक दिन गुस्से में जब मैंने चिढ कर कहा की मुझे कोई तकलीफ हो ही नहीं रहा है तो तस्सली क्यों दे रहे हो
तब ये बोला ऐसा है तो तुम मुझसे शादी कर लो क्योंकि मै तो तुम्हे सच में प्यार करता हूँ और शादी करना चाहता हूँ
उस समय तो मुझे लगा की ये मजाक कर रहा है .माँ पापा रोज शादी के लिए जब दवाब डालने लगे रिश्ते भी अच्छे नहीं आरहे थे कॉलोनी में लोगों को भनक भी तो लग गयी थी कुछ कुछतब मैंने फैसला किया की मै दिलीप से शादी करुँगी और हम सच में शादी करके बहुत सुखी जीवन बिता रहे हैं इसमें तुम्हारा भी योगदान है इसलिए मै तुम्हे
धन्यवाद देना चाहती थी .” “ नवीन तू अपने को कोसना अब बंद कर और लिली की चिंता भी अब सिर्फ तेरा नहीं
रहा अबसे हमारा भी उस पर पूरा हक होगा और इसी हक से हम जो करना चाहें तू रोकेगा नहीं .” “ मै बता नहीं सकता की आज का दिन मेरे लिए क्या मायने रखता है मै इतना खुश हूँ की तुम लोग मेरी जान भी मांगोगे वो हाजिर
कर दूँगा.वर्षों से मै तुम दोनों दोस्त से मिलना चाहता था मिल कर माफी मांगना चाहता था मेरे लिए तो वही कठिन
लग रहा था पर अब तो मुझे अपने बचपन के दोस्त वापस मिल गए हैं ,लगता है मेरा नसीब भी अब जरुर बदलेगा .”
नवीन मै तुम्हारी बेटी से मिलना चाहती हूँ कहाँ है वो ?” “ चलो अभी मिलवाता हूँ "और जब ये सब पहुंचे तो वहाँ सब एक दुसरे के साथ घुलमिल कर चुटकुलों का माहौल जमाये हुए थे लिली को पहली बार खुल कर हंसता हुआ देख
नवीन के आँखों में आसूं आ गए . "अरे वाह तुम लोग तो यहाँ रंग जमाये हुए हो.” “ अरे मम्मी आप भी यहीं आ गयीं ?” “क्यों भाई तुम जवानों में हमारा आना मना है क्या ?वैसे मै लिली बिटिया से मिलने आई हूँ .” लिली ने झुक कर संध्या के पैर छू लिए. “ जीती रहो बेटी ,नवीन तुम्हारी बेटी तो बहुत ही प्यारी है .” नवीन लिली के आँखों के प्रश्न
को समझ कर परिचय करवाया "लिली ये वही संध्या आंटी हैं जिनसे मै मिलना चाहता था ये दिलीप अंकल की पत्नी हैं इन दोनों के बारे में तो तुम कई बार सुन चुकी हो की ये मेरे बचपन के मित्र हैं .” “आंटी आप दोनों के बारे में मुझे भी
काफी कुछ पता है क्योंकि पापा के पास सिवाय आप दोनों के बारे में बताने के और कुछ होता ही नहीं था.” “ अच्छा
तो खूब शिकायतें भी की होगी इसने कह कर दिलीप कसकर ठहाका लगा कर हँस दिया .नवीन ये सब देख खुश भी
हुआ और इतने साल इस सब को मिस किया इसका अफसोस भी हुआ .
इसके बाद की बस इतनी कहानी है की शिमला जा कर सभी लोग नवीन के घर पर ठहरे दो हफ्ते के समय
किस तरह से बीता वो किसी को भी पता नहीं चला .विदाई की बेला में सब दुखी थे पर सुनील और लिली तो जैसे
मुरझा से गए थे .ये सब बड़ों से छिपा न था सो जाने के समय संध्या ने लिली से कहा"चिंता मत करो जल्द ही हम दुबारा फिर आयेंगे और इस बार तुम्हे भी ले कर जायेंगे.कुछ समय के बाद उन दोनों की शादी हो गयी .नवीन के जीवन में फिर से मुस्कान लौट आई थी उसका प्रायश्चित पूरा हो चूका था .

गुरुवार, 13 जनवरी 2011

बच्चों की कहानी: सीख


 
ये कहानी है राजनगर की ,वहाँ एक बड़े ही संम्पन्न और धार्मिक व्यक्ति सेठ मुरली प्रसाद अपने पूरे परिवार सहित निवास करते थे .उनके परिवार में कुल सात लोग थे .पर हर दिन उनके यहाँ करीब पचीस तीस लोगों का भोजन पका
करता .आप पूछेंगे "ये बाकी के लोग कौन हैं?”तो बस इतना जान लीजिए की केवल सेठ जी ही नहीं उनकी पत्नी भी बड़े ही धार्मिक और सात्विक विचारों वाली महिला थीं बिलकुल माँ अन्नपूर्णा की ही अवतार थीं नाम था राधा रानी .
आये दिन उनके घर मेहमानों,रिश्तेदारों का आना जाना लगा रहता.कोई कोई तो काम से आते पर कुछ निट्ठल्ले
बस यूँ ही जमे रहते अब इसे सेठजी की दरयादिली कहें या राधा देवी के हाथों बने लजीज खाने का लालच,समझिए
सालों साल से ये सब यूँ ही होता चला आ रहा थाइतना ही नहीं उनके घर में कुछ पशुओं का भी डेरा था.दो गाय एक तोता एक कुत्ता और एक घोडा भी उनके यहाँ बड़े सुख से रहते थे.ये सब तो काम के थे .कुछ बिना काम के भी थे जैसे की उनके घर में रहने वाले चूहे .वे भी उनके घर में कई पुश्तों से रहते चले आ रहे थे जिन्हें सेठ जी के घर के लोग अच्छी तरह से नहीं जानते थे.
सेठ जी के पूज्य पिता स्वर्गीय गोपाल प्रसाद जी के दादाजी जैसलमेर से यहाँ पधारे थे .तबसे ये लोग यहीं के
वासी हो गए थे.जब स्वर्गीय सेठ दुर्गा प्रसाद यहाँ अपने लाव लश्कर समेत आरहे थे उस वक्त ऊंटगाडी में एक बोरे के
अंदर चूहों का एक पूरा परिवार भी शामिल था.यहाँ पहुँच कर घर में सामान जब खुला तब ये सारे भाग कर किसी
कोने कबाड में अपना कब्ज़ा जमा लिएऔर इस तरह इन चूहों के भी कई पुश्त इनलोगों के साथ अपना बसेरा जमाए हुए
थे .अभी तक तो सब कुछ बहुत अच्छा से चल रहा था खाने को भरपूर मिलता .जीव हत्या इस घर में पाप माना जाता था सो ये सब खूब मजे से रहते थे.
राधा रानी यूँ तो बड़ी ही धार्मिक ख्यालों की थीं पर उनकी भी एक बुरी आदत थी वो ये की उन्हें टीवी देखने का नशा था.खास तौर पर शाम आठ से ग्यारह बजे रात तक उस समय में टीवी के सामने वे बिलकुल चिपक कर बैठी रहतीं चाहे उनकी बूढी ननद काशी बाई लाख चिल्लाती गालियाँ निकालतीं रहें उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता .उनके दोनों बेटे और दोनों बेटियाँ इस आदत का खूब फायदा उठाते.जो कुछ भी मांगना हो या कहीं जाना हो माँ से इसी समय फरमाईश करते वो भी झट से मान लेतीं ताकि तंग न करेंबेटे दोनों बड़े थे एक का नाम अमर और दुसरे का आनंद था.बेटियों का नाम हीरा और पन्ना था.वैसे बच्चों में कोई बुरी आदतें नहीं थीं बस कुछ शरारती थेकाशी देवी को टीवी जरा भी नहीं सुहाता था कारण उनकी आँखे और कान दोनों ही ठीक से काम नहीं करते थे तो वे इसका आनंद नहीं उठा पातीं थीं सो उन्हें टीवी से बड़ी चिढ थी .
अब कहानी में कुछ बदलाव लातें हैं .चूहों का जो परिवार था उसके मुखिया का नाम चंदू था पत्नी का धन्नो,तथा उनके तीनो बच्चे जिनका नाम था देवा और नीता,गीता,तीनो बड़े होनहार थे  चंदू भी अपने सेठ जी के जैसा ही सीधा साधा था धन्नो को बस अपने परिवार की चिंता रहती थी क्योंकि उसके तीनो ही बच्चे थोड़े अनोखे थे.चंदू और धन्नो के लाख समझाने पर भी तीनो के तीनो कोई बात नहीं मानते अपनी मन का करते बेचारे माँ बाप इस वजह से बड़े दुखी रहते थेसेठजी के घर में एक जिम बना हुआ कमरा था जिसमे सेठजी और उनके बेटे एक्सरसाईज किया करते थे,अपने देवा महराज को भी ये शौक लग गया था .आपने कभी किसी चूहे का जिम में कसरत करते सुना हैमैंने तो नहीं सुना.देवा ट्रेड मील पर दौड़ लगाता या उठक बैठक करता बाकि तो उसके बस का नहीं था.पर इतने से ही खूब डीलडौल बना लिए था पट्ठे ने.अब सुनिए दोनों चुहियों का कारनामा ,नीता को सेठानी का कमरा पसंद था क्योंकि वहाँ उसे अपना मन पसंद डांस का प्रोग्राम टीवी पर देखने को मिलता था जिसे देख देख कर वो भी अच्छी डांसर बन गयी थी .शो देखने के बाद जम कर प्रेक्टिस भी तो करती थी..अब बची गीता ,ये थोड़ी अलग कैरेक्टर की है इसे सेठानी के पूजा घर से इतना लगाव है की ये वहाँ से कहीं जाती ही नहीं ,भला क्यों जाए ?एक तो गणेश जी की परम भक्त थी दूसरा खाने को ऐसा लाजवाब प्रसाद मिल जाता था .पूजा घर में मंदिर के जैसा पवित्र वातावरण और सुगंध मिलता था इन सब बातों के अलावे भी
एक खास वजह थीजिसके कारण वो काशी देवी की धमकी और गालियाँ भी आराम से सुनती थी.गणेश भगवान केचरणों में जो उनका वाहन मूसक जी विराजते थे गीता उन्हें अपना पति मानने लगी थी उन्हें निहारती रहती .उसकी माँ धन्नो बेचारी सर पीट कर रह जाती उसके इस मूर्खता पर .समझाती भी पर वो कुछ समझना ही नहीं चाहती थी .पर एक अच्छी बात गीता ने सीखी थी यहाँ रहने की वजह से उसे भजन कीर्तन गाना खूब अच्छे से आ गया था.
समय ऐसे ही गुजरता रहा .सेठ जी की छोटी बिटिया पन्ना ने गर्मी की छुट्टी होने पर घर के पास खुले कला केन्द्र में डांस सीखने का कोर्स ज्वायन कर लिया था.कुछ दिन सीखने के बाद एक दिन उसकी माँ ने उसे डांस करके दिखाने को बोला.जब वो नाच रही थी तब नीता को भी मन किया अपना डांस सब को दिखाने का ,भाई अच्छेकलाकार को वाहवाही भी तो चाहिए .सब लोग चाय नाश्ता के साथ पन्ना का डांस देख रहे थे की अचानक पंखे औरझूमर पे लटक कर तरह तरह के पोज में नीता ने डांस करना शुरु किया .किसी का उसपर जब नजर पडा तो वो सब को दिखलाया अब सब उसे भगाने के लिए कई तरह से कोशिश करने लगे पर नीता तो नाचने में मगन थी ,फिर किसी ने पंखा का बटन दबा दिया नीता रानी सीधे चाय के गर्म प्याले में डुबकी लगाने लगी.उस दिन तो उसे मरने से बचा लिया गया सेठानी की दया से वरना तो राम नाम सत् हो जाता. कुछ दिनों के बाद जब नीता पूरी तरह ठीक हो गयी थी और चुपचाप उदास बैठी थी तो उसकी माँ ने कहा "कबतक यूँही बैठी रहोगी कुछ करती क्यों नहीं?” “क्या करूँ मैं " “क्यों इतना अच्छा डांस तुम्हे आता है कुछ नहीं तो अपना एक डांस स्कूल खोल लो जिसमे अपने जैसे डांस पसंद करने वालों चूहों चुहियों को बुला कर सिखाना शुरु कर दो.” खुशी से फुदक कर नीता माँ के गले लग बोली माँ तुमने तो मुझे जीने का रास्ता दिखा दिया में ये जरुर करुँगी.”
एक दिन सेठ की दूसरी बेटी हीरा मेले से एक बिल्ली खरीद कर ले आयी .बड़ी ही सुन्दर बिल्ली थी .खूब चमकीले काले रेशमी बाल थे उसके जब म्याऊं म्याऊं करती तो सब को खूब मजा आता दोनों बहनों में तो उसे गोद लेने के लिए झगडा भी हो जाता थाइस घर में पूर्णिमा के दिन भगवान को खीर का भोग लगता था इस बार भी लगाया गया.किट्टी को यानि बिल्ली को जब खीर का सुगंध लगा तो वो पूजा घर के आस पास मंडराने लगी किसी को न देख जल्दी से पूजा घर में घुस गयीखीर के साथ साथ मोटी ताज़ी चुहिया पर जब नजर पड़ा तो उसके मुह से लार टपक गया अरे वाह भगवान के घर में आज मेरी दावत है सोचा खीर तो है ही पहले इस चुहिया को ही खा लूँ नहीं तो भाग न जाये .पर कहते है न की मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है किट्टी ने गीता को अपने मुह में पकड़ लिया
था गीता असहाय की तरह अपने पति देव से बचाने के लिए गुहार लगा रही थी प्रभु अपनी भक्ति का ये कैसा फल देरहे हैंकी तभी प्रभु ने सचमुच अपने भक्त की पुकार पर बचाने के लिए काशी बुआ को भेज दिया.वैसे तो काशी बुआठीक से देख नहीं पाती हैं पर आज उन्हें शायद कोई दिव्य दृष्टि मिल गया था अंदर घुसते ही उन्हें ये सब दिख गया फिरतो हाथ का लोटा फेक कर जो मारा सीधे जाकर किट्टी को जोर से लगा "पूजा घर में शिकार करेगी वो भी हमारे यहाँ?
किट्टी का जबड़ा खुला का खुला ही रह गया गया और गीता जान प्राण लेकर भागी सीधे माँ के पास .उसने कसम खाई की अब से माँ के साथ रहेगी पूजा घर में तो भूल कर भी नहीं जायेगीबताईये तो जिस भगवान ने बचाया उसी के पास न जाने का प्रण ये तो घोर कलजुग है भाई.उसकी माँ ने उसे प्यार से अपने पास बैठाया फिर कहा "तुम्हे सही ढंग से जीना सीखना पड़ेगा,मेरे पास हर समय तो नहीं रह सकती हो " ”तो मैं क्या करूँ पूजा घर में तो अब नहीं जा सकती हूँ " "जा क्यों नहीं सकती हाँ सावधानी रखना जरुरी है वैसे भी हम चूहों को हमेशा सावधान रहना चाहिए तभी लंबी उम्र तक जी सकते हैं ,” “तो मैं क्या करूँ माँ?” ”देख नीता एक डांस स्कूल खोल रही है तुम भी उसी में गाना सिखाया करना,सब कहतें हैं और मुझे ,तेरे पापा को भी तेरा गाना बड़ा ही सुरीला लगता है.नीता ने भी कहा हाँ दीदी तुम्हारा गाना वाकई में बहुत अच्छा लगता है हम दोनों मिलकर स्कूल चलाएंगे तो काफी लोग सिखने आजायेंगे.
देवा की भी कहानी सुन लीजिए .इधर सेठ जी को किसी ने योगा करने के लिए कहा बड़े फायदे भी गिनाए उसके तब सेठ जी ने एक योगा के गुरु को रख कर सीखना शुरु कर दिया .अपने देवा कोई कम थोड़े हैं वे भी पूरे लगन के साथ सिखने लगे कुछ ही दिनों के बाद उन्हें थोड़ा थोड़ा योगा आ गया था. एक दिन योगा करने के बाद देवा शवासन में लेटे थे पता नहीं शायद सो गए थे इसी से उन्हें पता ही नहीं चला की सेठ जी का सेवक आकर कब साफ सफाई करने लगा था .अचानक सफाई करने के दौरान आसावधानी वश वजन उठाने वाला एक छल्ला गिरा और लुढकते हुए से सीधे देवा की पूँछ परसे गुजर गया.मत पूछिए बेचारे देवा का हाल उसकी तो पूंछ ही नहीं रही .बिना दुम के चूहे की क्या इज्जत रह जाती है .अब तो नया पूंछ जब तक आएगा तब तक बेचारा अंडरग्राउन्ड ही रहेगा.मुसीबत आयी
तब जाकर समझ आया की माँ बाप सही कहते थे, “बेटा इंसानों के बीच बहुत नहीं जाना चाहिए खतरा रहता है.कुछ दिनों के आराम के बाद जब नया पूँछ भी आगया तो उसने अपने पापा से कहा "पापा इतने दिनों तक जो भी सीखा है उसे व्यर्थ नहीं होने देना चाहता हूँ इस लिए अब सोच रहा हूँ की मै भी अपने बहनों के स्कूल में ही चूहों को कसरत और योगा सिखाऊँ आप क्या कहते हैं?” “बेटा आज तुमने बड़ी ही समझदारी की बात की है मैं बहुत ही खुश हूँ तुम तीनों को हमारा आशीर्वाद है खूब उन्नति करो तुम लोग.इस तरह तीनों को जिंदगी जीने की सही सीख मिल गयी.अब सबलोग सुख से हैं.